अध्याय 127

कोबन का दृष्टिकोण

वह अजनबी आवाज़ पूरी जेल में शॉटगन की तरह गूंज उठी।

डिंग। डोंग। डिंग।

हम दोनों झटके से उठ बैठे, रजाई हमारी कमर तक गिर गई।

मार्गो की आँखें चौड़ी हो गईं, उसके चेहरे पर पहले से ही घबराहट साफ दिख रही थी, जैसे उसकी आँखें दीवारों के चारों ओर घूम रही हों, मानो कोई जादूगर हमारे सामन...

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